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श्री लड्डू गोपाल जी की आरती

Artistic depiction of baby Lord Krishna with Radha, surrounded by divine ornaments.

श्री लड्डू गोपाल जी की आरती भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप, लड्डू गोपाल जी, को समर्पित एक भक्तिपूर्ण आरती है। यह स्वरूप विशेष रूप से घरों में अत्यधिक प्रेम और भक्ति के साथ पूजा जाता है, जहाँ उन्हें परिवार के एक सदस्य के रूप में देखा जाता है। इस आरती के माध्यम से भक्त अपने आराध्य लड्डू गोपाल के प्रति अपनी भक्ति और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, उनके दिव्य स्वरूप और बाल लीला की महिमा का गुणगान करते हैं। इस आरती के माध्यम से भक्त भगवान श्रीकृष्ण के साथ अपने आध्यात्मिक संबंध को और गहरा करने का प्रयास करते हैं।

श्री लड्डू गोपाल जी की आरती: बालकृष्ण की लीला और भक्ति

आरती श्री गोपाल जी की कीजे।
अपना जन्म सफल कर लीजे ॥।

श्री यशोदा का परम दुलारा।
बाबा की अखियन का तारा ।।
गोपियन के प्राणों का प्यारा।
इन पर प्राण न्योछावर कीजे ।।
।। आरती ।।

बलदाऊ के छोटो भैय्या ।
कान्हा कहि कहि बोलत मैय्या ।।
परम मुदित मन लेत बलैय्या।
यह छबि नैनन में भरि लीजे।।
।। आरती ।।

श्री राधावर सुघर कन्हैय्या ।
ब्रज जन का नवनीत खवैय्या ।।
देखत ही मन नयन चुरैय्या।
अपना सर्वश्व इनको दीजे ।।
।। आरती ।।

तोतर बोलनि मधुर सुहावे ।
सखन मधुर खेलत सुख पावे ।।
सोई सुकृति जो इनको ध्याये।
अब इनको अपनो करि लीजे ।।
।। आरती ।।

अर्थ और व्याख्या

श्लोक 1:

आरती श्री गोपाल जी की कीजे। अपना जन्म सफल कर लीजे ॥।
अनुवाद: श्री गोपाल जी की आरती कीजिए और अपने जीवन को सफल बनाइए।
व्याख्या: इस श्लोक में लड्डू गोपाल की पूजा का महत्व बताया गया है, यह कहा गया है कि उनके प्रति भक्ति के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को सफल और सार्थक बना सकता है।

श्लोक 2:

श्री यशोदा का परम दुलारा। बाबा की अखियन का तारा ।। गोपियन के प्राणों का प्यारा। इन पर प्राण न्योछावर कीजे ॥।
अनुवाद: वे यशोदा के परम दुलारे हैं, बाबा (नंद बाबा) की आँखों के तारे हैं, और गोपियों के प्राणों के प्यारे हैं। अपने प्राण इन पर न्योछावर कर दीजिए।
व्याख्या: इस श्लोक में श्रीकृष्ण की प्रियता को दर्शाया गया है। वे माता यशोदा, नंद बाबा, और गोपियों के प्रिय हैं। भक्तों को यह सिखाया जाता है कि उन्हें अपना सर्वस्व श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित कर देना चाहिए।

श्लोक 3:

बलदाऊ के छोटो भैय्या । कान्हा कहि कहि बोलत मैय्या ।। परम मुदित मन लेत बलैय्या। यह छबि नैनन में भरि लीजे ॥।
अनुवाद: वे बलराम के छोटे भाई हैं, जिन्हें माता यशोदा “कान्हा” कहकर पुकारती हैं। माता उनके रूप पर बलैय्या लेती हैं। इस छवि को अपने नयनों में भर लीजिए।
व्याख्या: इस श्लोक में श्रीकृष्ण और उनके परिवार के सदस्यों के बीच के स्नेहपूर्ण संबंधों का वर्णन किया गया है। विशेष रूप से उनकी माता यशोदा के साथ उनके प्रेम और आनंद का चित्रण किया गया है। भक्तों से कहा जाता है कि वे श्रीकृष्ण के इस बाल रूप की छवि को अपनी आँखों में समा लें।

श्लोक 4:

श्री राधावर सुघर कन्हैय्या । ब्रज जन का नवनीत खवैय्या ।। देखत ही मन नयन चुरैय्या। अपना सर्वश्व इनको दीजे ॥।
अनुवाद: वे राधाजी के प्रिय कन्हैया हैं, जो ब्रजवासियों को मक्खन खिलाते हैं। उनकी एक झलक ही मन और आँखों को मोह लेती है। अपना सब कुछ उन्हें अर्पण कर दीजिए।
व्याख्या: इस श्लोक में श्रीकृष्ण की राधाजी के साथ उनकी प्रेमपूर्ण लीला और ब्रजवासियों के प्रति उनके स्नेह का वर्णन किया गया है। भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे अपने जीवन का सर्वस्व श्रीकृष्ण को अर्पित कर दें।

श्लोक 5:

तोतर बोलनि मधुर सुहावे । सखन मधुर खेलत सुख पावे ।। सोई सुकृति जो इनको ध्याये। अब इनको अपनो करि लीजे ॥।
अनुवाद: उनकी तोतली बातें मधुर और सुहावनी हैं। उनके सखा उनके साथ खेलकर आनंद पाते हैं। वही सच्चा भाग्यशाली है जो इनका ध्यान करता है। अब इन्हें अपना बना लीजिए।
व्याख्या: इस श्लोक में श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की मधुरता और उनकी सखाओं के साथ उनकी खेल की लीलाओं का वर्णन किया गया है। भक्तों को यह संदेश दिया जाता है कि वे श्रीकृष्ण को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बना लें।

सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

श्री लड्डू गोपाल जी की आरती का विशेष महत्व उन भक्तों के लिए है जो भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करते हैं। यह आरती प्रातः और सायंकालीन पूजा के समय गाई जाती है, विशेष रूप से उन घरों में जहाँ लड्डू गोपाल जी की प्रतिमा स्थापित होती है। यह आरती भक्तों को श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को प्रकट करने का एक माध्यम प्रदान करती है। यह जन्माष्टमी और अन्य कृष्ण उत्सवों के दौरान भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है।

 निष्कर्ष

श्री लड्डू गोपाल जी की आरती भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप के प्रति भक्ति और प्रेम का एक सुंदर अभिव्यक्ति है। यह आरती उनकी मासूमियत, उनके दिव्य खेल और उनके प्रति भक्तों की श्रद्धा का गुणगान करती है। इस आरती को गाकर भक्त श्रीकृष्ण के साथ अपने आध्यात्मिक संबंध को और गहरा कर सकते हैं। आरती के श्लोकों के अर्थ को समझने से भक्तों का आध्यात्मिक अनुभव और भी समृद्ध होता है, और यह आरती भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और समर्पण का एक भावपूर्ण अर्पण बन जाती है।

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