“जय गणेश” आरती भगवान गणेश को समर्पित एक प्रमुख भजन है। गणेश जी को विघ्नहर्ता, शुभारंभ के देवता और कला व विज्ञान के संरक्षक के रूप में पूजा जाता है। यह आरती विशेष रूप से गणेश चतुर्थी के समय गाई जाती है और दैनिक पूजा में भी इसका महत्व है।

जय गणेश आरती: गणेश जी की महिमा और आशीर्वाद

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा॥

एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे,
मूसे की सवारी॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा॥

पान चढ़े फल चढ़े,
और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे,
संत करें सेवा॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा॥

अंधन को आंख देत,
कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत,
निर्धन को माया॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा॥

'सूर' श्याम शरण आए,
सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा॥

दीनन की लाज रखो,
शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो,
जाऊं बलिहारी॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा॥

अर्थ और व्याख्या

  • पहला पद:
    “जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।”
    अर्थ: “भगवान गणेश की जय हो, जो दिव्य देवता हैं। उनकी माता पार्वती और पिता महादेव हैं।”
    व्याख्या: यह पद भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करता है और उनके दिव्य माता-पिता का उल्लेख करता है।
  • दूसरा पद:
    “एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी।”
    अर्थ: “वे एक दंत वाले हैं और दयालु हैं। उनकी चार भुजाएँ हैं, माथे पर सिंदूर शोभायमान है, और वे मूषक पर सवार हैं।”
    व्याख्या: यह पद भगवान गणेश की शारीरिक विशेषताओं और उनकी सवारी का वर्णन करता है।
  • तीसरा पद:
    “पान चढ़े, फल चढ़े, और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा।”
    अर्थ: “उन पर पान, फल, और मेवा चढ़ाए जाते हैं। लड्डू का भोग लगता है, और संत उनकी सेवा करते हैं।”
    व्याख्या: यह पद गणेश जी को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद और उनकी सेवा का वर्णन करता है।
  • चौथा पद:
    “अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।”
    अर्थ: “वे अंधों को दृष्टि देते हैं, कोढ़ियों को नया शरीर देते हैं, बांझ महिलाओं को पुत्र देते हैं, और गरीबों को धन देते हैं।”
    व्याख्या: यह पद भगवान गणेश की कृपा और उनकी शक्तियों का वर्णन करता है।
  • पांचवां पद:
    “‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।”
    अर्थ: “भक्त ‘सूर’ शरण में आए हैं, उनकी सेवा को सफल बनाएं। उनकी माता पार्वती और पिता महादेव हैं।”
    व्याख्या: यह पद भगवान गणेश की शरण में जाने और उनकी कृपा प्राप्त करने का महत्व बताता है।
  • छठा पद (अतिरिक्त):
    “दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी। कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी।”
    अर्थ: “शंभु पुत्र, दीनों की लाज रखो। हमारी कामनाओं को पूर्ण करो, और मैं आपकी सेवा में समर्पित हो जाऊं।”
    व्याख्या: इस पद में भक्त भगवान गणेश से रक्षा और उनकी इच्छाओं की पूर्ति की प्रार्थना करता है।

सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

यह आरती गणेश पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है और विशेष रूप से गणेश चतुर्थी के दौरान गाई जाती है। इसके माध्यम से भगवान गणेश से आशीर्वाद और रक्षा की प्रार्थना की जाती है, जो उन्हें भक्तों के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है।

निष्कर्ष

“जय गणेश” आरती भगवान गणेश के प्रति भक्ति और श्रद्धा को व्यक्त करती है। इस आरती के अर्थ को समझकर इसे गाना एक गहरे आध्यात्मिक अनुभव की ओर ले जाता है, जो भक्तों को भगवान गणेश की शिक्षाओं को अपने जीवन में शामिल करने के लिए प्रेरित करता है।

By Ardhu

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