आरती एक भक्तिपूर्ण गीत है जो किसी देवता की स्तुति में गाया जाता है, और पूजा के दौरान दीपक घुमाने के साथ गाया जाता है। यह हिंदू धार्मिक प्रथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, अज्ञानता (अंधकार) को हटाने और ज्ञान एवं भक्ति (प्रकाश) को दिव्यता की ओर अर्पित करने का प्रतीक है।

आरती श्री गणपति जी भगवान गणेश को समर्पित है, जिन्हें विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता के रूप में व्यापक रूप से पूजा जाता है। उन्हें किसी भी महत्वपूर्ण कार्य या समारोह से पहले पूजा जाता है ताकि सफलता सुनिश्चित हो और कोई भी बाधा न आए।

श्री गणपति जी की आरती

॥ आरती श्री गणपति जी ॥
गणपति की सेवा मंगल मेवा,सेवा से सब विघ्न टरैं।
तीन लोक के सकल देवता,द्वार खड़े नित अर्ज करैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥

रिद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विराजें,अरु आनन्द सों चमर करैं।
धूप-दीप अरू लिए आरतीभक्त खड़े जयकार करैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥

गुड़ के मोदक भोग लगत हैंमूषक वाहन चढ्या सरैं।
सौम्य रूप को देख गणपति केविघ्न भाग जा दूर परैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥

भादो मास अरु शुक्ल चतुर्थीदिन दोपारा दूर परैं।
लियो जन्म गणपति प्रभु जीदुर्गा मन आनन्द भरैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥

अद्भुत बाजा बजा इन्द्र कादेव बंधु सब गान करैं।
श्री शंकर के आनन्द उपज्यानाम सुन्यो सब विघ्न टरैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥

आनि विधाता बैठे आसन,इन्द्र अप्सरा नृत्य करैं।
देख वेद ब्रह्मा जी जाकोविघ्न विनाशक नाम धरैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥

एकदन्त गजवदन विनायकत्रिनयन रूप अनूप धरैं।
पगथंभा सा उदर पुष्ट हैदेव चन्द्रमा हास्य करैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥

दे शराप श्री चन्द्रदेव कोकलाहीन तत्काल करैं।
चौदह लोक में फिरें गणपतितीन लोक में राज्य करैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥

उठि प्रभात जप करैंध्यान कोई ताके कारज सर्व सरैं
पूजा काल आरती गावैं।ताके शिर यश छत्र फिरैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥

गणपति की पूजा पहले करने सेकाम सभी निर्विघ्न सरैं।
सभी भक्त गणपति जी केहाथ जोड़कर स्तुति करैं॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥

अर्थ और व्याख्या

पहला श्लोक:

गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरैं।
तीन लोक के सकल देवता, द्वार खड़े नित अर्ज करैं॥
अनुवाद: गणपति की सेवा से मंगलकारी फल प्राप्त होते हैं, और उनकी सेवा करने से सभी विघ्न (बाधाएँ) दूर हो जाते हैं। तीनों लोकों के सभी देवता गणपति के द्वार पर खड़े होकर नित्य प्रार्थना करते हैं।
व्याख्या: यह श्लोक गणपति की भक्ति और सेवा के महत्व को दर्शाता है। उनकी कृपा से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं, और सभी देवता भी उनकी कृपा पाने के लिए विनती करते हैं।

दूसरा श्लोक:

रिद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विराजें, अरु आनन्द सों चमर करैं।
धूप-दीप अरू लिए आरती, भक्त खड़े जयकार करैं॥
अनुवाद: रिद्धि और सिद्धि गणपति के दक्षिण और वाम (दोनों) ओर विराजमान हैं और आनंदपूर्वक चंवर डुला रही हैं। भक्तगण धूप-दीप लेकर आरती कर रहे हैं और जयकार कर रहे हैं।
व्याख्या: गणपति की पूजा करते समय भक्तगण धूप-दीप जलाकर उनकी आरती करते हैं। रिद्धि (समृद्धि) और सिद्धि (सफलता) हमेशा गणपति के साथ रहती हैं, और उनकी कृपा से जीवन में आनंद और विजय प्राप्त होती है।

तीसरा श्लोक:

गुड़ के मोदक भोग लगत हैं, मूषक वाहन चढ्या सरैं।
सौम्य रूप को देख गणपति के, विघ्न भाग जा दूर परैं॥
अनुवाद: गणपति को गुड़ के मोदक का भोग लगाया जाता है, और वे अपने वाहन मूषक (चूहे) पर सवार रहते हैं। उनके सौम्य रूप को देखकर सभी विघ्न (बाधाएँ) दूर भाग जाते हैं।
व्याख्या: इस श्लोक में गणपति के प्रिय भोग और उनके वाहन का उल्लेख है। मोदक उनकी प्रिय मिठाई है, और मूषक उनका वाहन है। उनका सौम्य रूप देखकर सभी बाधाएं स्वतः ही दूर हो जाती हैं।

चौथा श्लोक:

भादो मास अरु शुक्ल चतुर्थी, दिन दोपारा दूर परैं।
लियो जन्म गणपति प्रभु जी, दुर्गा मन आनन्द भरैं॥
अनुवाद: भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी के दिन गणपति का जन्म हुआ, जिससे माता दुर्गा के मन में आनंद भर गया।
व्याख्या: यह श्लोक गणेश चतुर्थी की महिमा को दर्शाता है, जो गणपति का जन्मदिवस है। इस दिन का विशेष महत्त्व है, क्योंकि यह शुभ और पावन अवसर माना जाता है।

पाँचवां श्लोक:

अद्भुत बाजा बजा इन्द्र का, देव बंधु सब गान करैं।
श्री शंकर के आनन्द उपज्या, नाम सुन्यो सब विघ्न टरैं॥
अनुवाद: इन्द्र देव अद्भुत बाजा बजा रहे हैं और सभी देवता गणपति की स्तुति में गान कर रहे हैं। शिवजी के आनंद का स्रोत गणपति का नाम सुनते ही सभी विघ्न दूर हो जाते हैं।
व्याख्या: गणपति के जन्म के समय सभी देवता खुशी मना रहे थे। इस श्लोक में गणपति के नाम की महिमा का वर्णन है कि उनका नाम सुनते ही सभी विघ्न और कठिनाइयाँ समाप्त हो जाती हैं।

छठा श्लोक:

आनि विधाता बैठे आसन, इन्द्र अप्सरा नृत्य करैं।
देख वेद ब्रह्मा जी जाको, विघ्न विनाशक नाम धरैं॥
अनुवाद: विधाता (ब्रह्मा) अपने आसन पर बैठे हैं, इन्द्र और अप्सराएँ नृत्य कर रही हैं। वेदों में भी गणपति का वर्णन किया गया है, और उन्हें विघ्नों का नाश करने वाला कहा गया है।
व्याख्या: यह श्लोक गणपति की महानता और देवताओं के बीच उनकी प्रतिष्ठा को दर्शाता है। वेदों और पुराणों में भी उनकी महिमा का वर्णन किया गया है और उन्हें विघ्न विनाशक के रूप में पूजा जाता है।

सातवां श्लोक:

एकदन्त गजवदन विनायक, त्रिनयन रूप अनूप धरैं।
पगथंभा सा उदर पुष्ट है, देव चन्द्रमा हास्य करैं॥
अनुवाद: गणपति का एकदंत, गजवदन (हाथी जैसा मुख), और त्रिनयन (तीन नेत्र) वाला अनोखा रूप है। उनका उदर विशाल और पुष्ट है, और देवता चन्द्रमा भी उन्हें देखकर हंसते हैं।
व्याख्या: इस श्लोक में गणपति के शारीरिक रूप का वर्णन किया गया है। उनके अद्भुत और अद्वितीय रूप की विशेषताओं को दर्शाया गया है, जो सभी बाधाओं को हरने के लिए पूजनीय हैं।

आठवां श्लोक:

दे शराप श्री चन्द्रदेव को, कलाहीन तत्काल करैं।
चौदह लोक में फिरें गणपति, तीन लोक में राज्य करैं॥
अनुवाद: गणपति ने श्री चन्द्रदेव को शाप दिया और तुरंत उनकी कलाएँ समाप्त कर दीं। गणपति चौदहों लोकों में विचरण करते हैं और तीनों लोकों में राज्य करते हैं।
व्याख्या: यह श्लोक चन्द्रमा और गणपति की कथा का उल्लेख करता है, जब गणपति ने चन्द्रमा को शाप दिया था। इसमें गणपति के पूरे ब्रह्मांड में प्रभुत्व और सम्मान को भी दर्शाया गया है।

नौवां श्लोक:

उठि प्रभात जप करैं ध्यान, कोई ताके कारज सर्व सरैं।
पूजा काल आरती गावैं, ताके शिर यश छत्र फिरैं॥
अनुवाद: सुबह उठकर जो व्यक्ति गणपति का जप और ध्यान करता है, उसके सभी कार्य सिद्ध होते हैं। पूजा के समय आरती गाने वाले के सिर पर यश का छत्र सदा बना रहता है।
व्याख्या: इस श्लोक में गणपति की पूजा के महत्व को बताया गया है। सुबह-सुबह गणपति का ध्यान और आरती गाने से व्यक्ति के सभी कार्य सफल होते हैं और उसे यश और सम्मान प्राप्त होता है।

दसवां श्लोक:

गणपति की पूजा पहले करने से, काम सभी निर्विघ्न सरैं।
सभी भक्त गणपति जी के, हाथ जोड़कर स्तुति करैं॥
अनुवाद: जो कोई भी पहले गणपति की पूजा करता है, उसके सभी काम बिना किसी विघ्न के पूर्ण होते हैं। सभी भक्त गणपति जी की स्तुति करते हैं और उनके आशीर्वाद के लिए हाथ जोड़ते हैं।
व्याख्या: इस अंतिम श्लोक में गणपति की पूजा की महत्ता को रेखांकित किया गया है। किसी भी कार्य की शुरुआत में गणपति की पूजा करने से कार्य निर्विघ्न पूर्ण होता है और भक्त उनके प्रति श्रद्धा से झुकते हैं।

सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

यह आरती गणपति के विभिन्न गुणों को दर्शाती है, जैसे कि विघ्नों का नाश करने वाले और ज्ञान, समृद्धि, और सफलता के देवता के रूप में उनकी भूमिका। पारंपरिक रूप से, यह आरती गणेश चतुर्थी के उत्सव में गाई जाती है, जो गणपति के जन्म का उत्सव है। भक्तों का विश्वास है कि इस आरती को पूरी श्रद्धा के साथ गाने से जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।

निष्कर्ष

यह आरती न केवल गणपति की महिमा का गुणगान करती है, बल्कि भक्तों को उनकी पूजा के द्वारा प्राप्त होने वाले आशीर्वादों की भी याद दिलाती है। श्लोकों के गहरे अर्थों को समझना किसी की आध्यात्मिक साधना को और भी सशक्त बना सकता है, और पूजा में अधिक ध्यान और भावना को प्रोत्साहित कर सकता है।

By Ardhu

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *