आरती हिंदू धार्मिक प्रथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे देवता की स्तुति में गाया जाता है। आरती का गान विशेष रूप से पूजा और अनुष्ठानों के दौरान किया जाता है, जहां दीपों को देवता के समक्ष घुमाकर अज्ञानता और अंधकार को दूर करने का प्रतीकात्मक कार्य किया जाता है।

“आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की” भगवान कृष्ण को समर्पित एक सुंदर आरती है, जिसमें उन्हें कुंजबिहारी (राधा के प्रिय) और गिरिधर (गोवर्धन पर्वत के उठाने वाले) के रूप में स्तुति की गई है। यह आरती भगवान कृष्ण की दिव्य सुंदरता, गुणों और उनकी लीला का गुणगान करती है।

आरती कुंजबिहारी की” – भगवान श्रीकृष्ण की आरती

॥ आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चन्द्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग; अतुल रति गोप कुमारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच,
हरै अघ कीच; चरन छवि श्रीबनवारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद,
कटत भव फंद; टेर सुन दीन भिखारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

अर्थ और व्याख्या

श्लोक 1:

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
अनुवाद: भगवान कृष्ण बैजंती के फूलों की माला धारण करते हैं और अपनी बांसुरी पर मधुर धुन बजाते हैं।
व्याख्या: इस श्लोक में भगवान कृष्ण के दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। उनकी बांसुरी की मधुर ध्वनि सभी प्राणियों को मोहित करती है, जो उनकी दिव्य आकर्षण का प्रतीक है।

श्लोक 2:

श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
अनुवाद: उनके कानों में झुमके चमक रहे हैं, और वे नंद के आनंद नंदलाला हैं।
व्याख्या: कृष्ण के कानों में चमकते झुमके उनके सौंदर्य को बढ़ाते हैं। वे नंदलाल हैं, जो अपने पिता नंद के लिए अपार आनंद का स्रोत हैं, जो उनके बालसुलभ और प्रेममयी स्वभाव को दर्शाता है।

श्लोक 3:

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
अनुवाद: उनका अंग आकाश के समान कांति वाला है, और राधिका उनके पास खड़ी होकर चमक रही हैं।
व्याख्या: कृष्ण के गहरे रंग की तुलना आकाश से की गई है, जो उनकी अनंतता और रहस्यमय प्रकृति का प्रतीक है। राधा, उनकी शाश्वत प्रेमिका, उनके पास खड़ी होकर दिव्य प्रकाश से चमक रही हैं, जो आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है।

श्लोक 4:

लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चन्द्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की।
अनुवाद: भगवान वनमाली की मुद्रा में खड़े हैं, उनकी अलकें भंवरे जैसी हैं, उनके माथे पर कस्तूरी का तिलक है, और उनका मुख चंद्रमा के समान चमक रहा है; उनकी सुंदर छवि श्यामा (राधा) को प्रिय है।
व्याख्या: कृष्ण को वनमाली, वन के निवासी के रूप में दर्शाया गया है। उनकी घुंघराली अलकें, सुगंधित तिलक और चंद्रमा जैसे मुखमंडल उनकी दिव्य सुंदरता को बढ़ाते हैं, जो राधा के प्रति उनके प्रेम और आकर्षण को दर्शाता है।

 सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

यह आरती विशेष रूप से भगवान कृष्ण की पूजा में महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से जन्माष्टमी (कृष्ण के जन्म) और राधा अष्टमी (राधा के जन्म) जैसे त्योहारों के दौरान। इसे मंदिरों और घरों में संध्या प्रार्थना के समय गाया जाता है, जहां दीपों को कृष्ण की मूर्ति के सामने घुमाया जाता है। यह आरती कृष्ण की लीला और राधा के साथ उनके गहरे संबंध को समर्पित है, जो भक्तों के बीच इसे अत्यधिक प्रिय बनाता है।

निष्कर्ष

“आरती कुंजबिहारी की” भगवान कृष्ण के दिव्य स्वरूप और गुणों का सुंदर चित्रण करती है, जो भक्तों के हृदय में भक्ति और प्रेम की भावना को जाग्रत करती है। प्रत्येक श्लोक के पीछे के अर्थ को समझना आध्यात्मिक अनुभव को बढ़ाता है, जिससे व्यक्ति अधिक गहराई से दिव्य से जुड़ सकता है। इस आरती को दैनिक पूजा में शामिल करना शांति, आनंद और भक्ति का अनुभव दिला सकता है, जो हमें कृष्ण और राधा के शाश्वत प्रेम की याद दिलाता है।

By Ardhu

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