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“आरती गजबदन विनायक की” एक लोकप्रिय आरती है, जो भगवान गणेश को समर्पित है। भगवान गणेश, जिन्हें विनायक और गजानन के नाम से भी जाना जाता है, को विघ्नहर्ता, बुद्धि और ज्ञान के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह आरती भगवान गणेश की महिमा और उनके विभिन्न रूपों और गुणों का वर्णन करती है।
“आरती गजबदन विनायक की” – भगवान गणेश की महिमा और आरती
आरती गजबदन विनायक की।
सुर-मुनि-पूजित गणनायक की॥
आरती गजबदन विनायक की।
सुर-मुनि-पूजित गणनायक की॥
एकदन्त शशिभाल गजानन,
विघ्नविनाशक शुभगुण कानन।
शिवसुत वन्द्यमान-चतुरानन,
दुःखविनाशक सुखदायक की॥
आरती गजबदन विनायक की॥
ऋद्धि-सिद्धि-स्वामी समर्थ अति,
विमल बुद्धि दाता सुविमल-मति।
अघ-वन-दहन अमल अबिगत गति,
विद्या-विनय-विभव-दायक की॥
आरती गजबदन विनायक की॥
पिङ्गलनयन, विशाल शुण्डधर,
धूम्रवर्ण शुचि वज्रांकुश-कर।
लम्बोदर बाधा-विपत्ति-हर,
सुर-वन्दित सब विधि लायक की॥
आरती गजबदन विनायक की॥
अर्थ और व्याख्या
- पहला पद:
“आरती गजबदन विनायक की। सुर-मुनि-पूजित गणनायक की।”
अर्थ: “गजबदन (हाथी के मुख वाले) विनायक की आरती उतारी जा रही है, जो देवताओं और मुनियों द्वारा पूजित हैं।”
व्याख्या: इस पद में भगवान गणेश की पूजा का वर्णन किया गया है, जो देवताओं और ऋषियों द्वारा सम्मानित हैं। - दूसरा पद:
“एकदन्त शशिभाल गजानन, विघ्नविनाशक शुभगुण कानन। शिवसुत वन्द्यमान-चतुरानन, दुःखविनाशक सुखदायक की।”
अर्थ: “एकदन्त, शशिभाल (चंद्रमा को धारण करने वाले), गजानन (हाथी के मुख वाले), जो विघ्नों को नष्ट करने वाले और शुभ गुणों के जंगल हैं। शिव के पुत्र, जिनके चार मुख हैं, वे दुखों को नष्ट कर सुख देने वाले हैं।”
व्याख्या: भगवान गणेश के विभिन्न रूपों और उनके गुणों का वर्णन किया गया है, जिसमें वे बाधाओं को दूर करने वाले और सुख देने वाले के रूप में प्रकट होते हैं। - तीसरा पद:
“ऋद्धि-सिद्धि-स्वामी समर्थ अति, विमल बुद्धि दाता सुविमल-मति। अघ-वन-दहन अमल अबिगत गति, विद्या-विनय-विभव-दायक की।”
अर्थ: “जो ऋद्धि और सिद्धि के स्वामी हैं, अत्यंत समर्थ हैं, पवित्र बुद्धि और विवेक देने वाले हैं। जो पापों के वन को जलाने वाले, निर्मल और अज्ञात गति देने वाले हैं, और जो विद्या, विनय और वैभव के दाता हैं।”
व्याख्या: इस पद में भगवान गणेश को ऋद्धि-सिद्धि के स्वामी और विद्या, विनय तथा वैभव के दाता के रूप में वर्णित किया गया है। - चौथा पद:
“पिङ्गलनयन, विशाल शुण्डधर, धूम्रवर्ण शुचि वज्रांकुश-कर। लम्बोदर बाधा-विपत्ति-हर, सुर-वन्दित सब विधि लायक की।”
अर्थ: “जिनकी पिंगल रंग की आंखें हैं, विशाल सूंड है, धूम्रवर्ण (धुएं के रंग के) हैं, और वज्र तथा अंकुश को धारण करते हैं। जो लम्बोदर (बड़े पेट वाले) हैं, जो सभी बाधाओं और विपत्तियों को हरने वाले हैं, और जो देवताओं द्वारा पूजित हैं।”
व्याख्या: इस पद में भगवान गणेश के भौतिक स्वरूप और उनके शक्तिशाली गुणों का वर्णन किया गया है, जो सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने में सक्षम हैं।
संदेश
“आरती गजबदन विनायक की” आरती भगवान गणेश की महिमा का गान करती है, जो विघ्नों को हरने वाले, विद्या और बुद्धि के दाता, तथा सुख-संपत्ति के स्रोत हैं। यह आरती भगवान गणेश के विभिन्न रूपों और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली कृपा और आशीर्वाद का वर्णन करती है। यह आरती भक्तों को गणेश जी के प्रति भक्ति और समर्पण के माध्यम से अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
यह आरती विशेष रूप से गणेश चतुर्थी के समय और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान गाई जाती है। इसे गाने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और जीवन के सभी विघ्नों और बाधाओं को दूर करने में सहायता मिलती है। यह आरती भगवान गणेश की भक्ति और उनके आशीर्वाद की महत्ता को दर्शाती है।
निष्कर्ष
“आरती गजबदन विनायक की” एक महत्वपूर्ण आरती है जो भगवान गणेश के प्रति भक्तों की श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करती है। इस आरती के अर्थ और भावना को समझकर इसका गान करना एक गहरे आध्यात्मिक अनुभव की ओर ले जाता है। यह आरती भगवान गणेश की कृपा से जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने और सुख-संपत्ति की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।