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श्री सूर्य देव चालीसा सूर्य देवता को समर्पित एक प्राचीन भक्तिपूर्ण स्तुति है, जो उनके तेज, शक्ति और कृपा का वर्णन करती है। यह 40 छंदों से मिलकर बना एक अत्यंत प्रभावशाली पाठ है, जो भक्तों को ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करने में सहायक है।
सूर्य देवता को हिंदू धर्म में जीवन, प्रकाश और ऊर्जा का स्रोत माना गया है। उनकी उपासना वैदिक काल से ही प्रचलित है। यह चालीसा विशेष रूप से उनके विभिन्न नामों, गुणों, और शक्ति की व्याख्या करती है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति, मन की शांति, और समस्याओं का समाधान मिलता है।
श्री सूर्य देव चालीसा का पाठ
दोहा
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥
चौपाई
जय सविता जय जयति दिवाकर,
सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु पतंग मरीची भास्कर,
सविता हंस सुनूर विभाकर॥
विवस्वान आदित्य विकर्तन,
मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि खग रवि कहलाते,
वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि,
मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर,
हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥
मंडल की महिमा अति न्यारी,
तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,
देखि पुरन्दर लज्जित होते॥
मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,
सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै,
हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं,
मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै,
दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥
नमस्कार को चमत्कार यह,
विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई,
अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥
बारह नाम उच्चारन करते,
सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन,
रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है,
प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते,
रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,
कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित,
भास्कर करत सदा मुखको हित॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे,
रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,
तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर,
त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन,
भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर,
कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा,
गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥
विवस्वान पद की रखवारी,
बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै,
रक्षा कवच विचित्र विचारे॥
अस जोजन अपने मन माहीं,
भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै,
जोजन याको मन मंह जापै॥
अंधकार जग का जो हरता,
नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही,
कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके,
धर्मराज सम अद्भुत बांके॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,
किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों,
दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥
परम धन्य सों नर तनधारी,
हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,
मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥
भानु उदय बैसाख गिनावै,
ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता,
कातिक होत दिवाकर नेता॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं,
पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥
दोहा
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥
धार्मिक महत्व
सूर्य देव चालीसा का पाठ भक्तों के लिए असीम लाभकारी माना गया है। यह चालीसा सूर्य देव की कृपा को आकर्षित करने का एक शक्तिशाली साधन है। इसके नियमित पाठ से:
- स्वास्थ्य सुधार: शारीरिक रोग और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।
- समृद्धि और उन्नति: आर्थिक समृद्धि, करियर में सफलता और जीवन में स्थिरता आती है।
- आध्यात्मिक शांति: मन की शांति और एकाग्रता प्राप्त होती है।
- संक्रांति और विशेष अवसर: रविवार और छठ पूजा जैसे शुभ अवसरों पर पाठ विशेष फलदायी होता है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ
- वैदिक संदर्भ: सूर्य देवता का वर्णन ऋग्वेद और अन्य वैदिक ग्रंथों में मिलता है। उन्हें “प्रकाश और जीवन के स्रोत” के रूप में पूजा जाता है।
- काव्यात्मक प्रभाव: श्री सूर्य चालीसा का रचना काल और रचनाकार अज्ञात हैं, लेकिन इसकी शैली भक्तिकाल की परंपरा से प्रभावित है।
मुख्य संदेश और प्रतीकात्मकता
मुख्य विचार:
- भक्ति और समर्पण का महत्व।
- जीवन में प्रकाश और सकारात्मकता का महत्व।
प्रतीकात्मकता:
- सूर्य की सात किरणें जीवन के सात गुणों का प्रतीक हैं।
- रथ पर सवार सूर्य देव उनके सृजनात्मक और विनाशकारी पहलुओं को दर्शाते हैं।
पाठ के नियम और विधि
- तैयारी:
- पाठ से पहले स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।
- पूजा स्थान को स्वच्छ कर दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
- पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- आवृत्ति:
- रविवार और संक्रांति जैसे शुभ दिनों पर पाठ करें।
- रोज़ाना पढ़ने से जीवन में अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।
- आंतरिक भावना:
- मन शांत और भक्ति से भरा हो।
- पाठ के दौरान सूर्य देव की कृपा का आह्वान करें।
समापन
श्री सूर्य देव चालीसा का नियमित पाठ भक्तों को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है। यह जीवन में सकारात्मकता, स्वास्थ्य, और समृद्धि का संचार करता है। इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करें और सूर्य देव की कृपा प्राप्त करें।