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शनि चालीसा भगवान शनि देव को समर्पित एक प्रसिद्ध भक्ति स्तोत्र है। इसे शनि देव के गुणों, लीलाओं, और भक्तों पर उनकी कृपा का वर्णन करने के लिए लिखा गया है। भगवान शनि देव, सूर्य देव और देवी छाया के पुत्र, न्याय और कर्म के देवता माने जाते हैं। उनकी दृष्टि से अच्छाई और बुराई का न्याय होता है।
शनि चालीसा का नियमित पाठ भक्तों को शनि ग्रह की अशुभ प्रभावों से बचाता है और उनके जीवन में शांति, समृद्धि, और स्थिरता लाता है। इसे विशेष रूप से शनिवार को और शनि जयंती के अवसर पर पढ़ना अत्यंत शुभ माना जाता है।
चालीसा के बोल
॥ दोहा ॥
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज।
करहुं कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
॥ चौपाई ॥
जयति-जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा तन श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।
हिये माल मुक्तन मणि दमकै॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल विच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।
यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन॥
सौरि मन्द शनि दश नामा।
भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा॥
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।
रंकहु राउ करें क्षण माहीं॥
पर्वतहूं तृण होई निहारत।
तृणहंू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहि दीन्हा।
कैकइहूं की मति हरि लीन्हा॥
बनहूं में मृग कपट दिखाई।
मात जानकी गई चुराई॥
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।
मचि गयो दल में हाहाकारा॥
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग वीर को डंका॥
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।
चित्रा मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।
तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ॥
विनय राग दीपक महं कीन्हो।
तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों॥
हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी॥
वैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी मीन कूद गई पानी॥
श्री शकंरहि गहो जब जाई।
पारवती को सती कराई॥
तनि बिलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा॥
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।
बची द्रोपदी होति उघारी॥
कौरव की भी गति मति मारी।
युद्ध महाभारत करि डारी॥
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
लेकर कूदि पर्यो पाताला॥
शेष देव लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहिं चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा॥
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्रु के नशि बल ढीला॥
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई॥
पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
धार्मिक महत्व:
शनि चालीसा का पाठ भक्तों के जीवन में कई लाभ प्रदान करता है:
- कष्टों का निवारण: यह शनि ग्रह के अशुभ प्रभावों को कम करता है और जीवन में शांति लाता है।
- न्याय और कर्म का प्रभाव: यह भक्तों को उनके कर्मों के प्रति जागरूक करता है और उन्हें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
- आशीर्वाद: शनि देव के आशीर्वाद से भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि प्राप्त होती है।
विशेष अवसर और पाठ विधि:
अवसर:
- शनिवार को शनि चालीसा का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है।
- शनि जयंती और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में भी इसका पाठ विशेष लाभकारी होता है।
विधि:
- सुबह या शाम को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पीपल के पेड़ के नीचे या शनि देव की मूर्ति के सामने दीया जलाएं।
- काले तिल, तेल, और पुष्प अर्पित करें।
- शांत मन से चालीसा का पाठ करें।
निष्कर्ष:
शनि चालीसा न केवल शनि देव की महिमा का वर्णन करती है, बल्कि यह भक्तों को सच्चाई और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। इसका नियमित पाठ जीवन के सभी क्षेत्रों में सकारात्मक ऊर्जा और सफलता लाता है। यह हमें सिखाता है कि कठिनाइयों का सामना धैर्य और समर्पण से करना चाहिए।