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चामुंडा देवी चालीसा: भक्ति और सुरक्षा का दिव्य स्तोत्र

A vibrant idol of Chamunda Devi adorned with colorful garlands, symbolizing divine energy and protection in Hindu beliefs.

चामुंडा देवी चालीसा देवी चामुंडा को समर्पित एक प्रसिद्ध भक्ति स्तोत्र है। देवी चामुंडा, दुर्गा के उग्र रूपों में से एक हैं और उनका नाम उनकी दो महान विजय—चंड और मुंड—के संहार से जुड़ा है। यह चालीसा मुख्यतः भक्ति, सुरक्षा और शक्ति का प्रतीक है। इसे गाने या पढ़ने से भक्त देवी के आशीर्वाद, शांति और कष्टों से मुक्ति प्राप्त करते हैं।

यह चालीसा संस्कृत, अवधी और हिंदी के प्रभाव वाली भाषा में रचित है, जो इसे भारत के विभिन्न हिस्सों में सरलता से समझने योग्य बनाती है। यह चालीसा विशेष रूप से नवरात्रि, अष्टमी, और चामुंडा देवी के पूजन के अवसरों पर पढ़ी जाती है।

चालीसा के बोल:

॥ दोहा ॥
नीलवरण मा कालिका रहती सदा प्रचंड।
दस हाथों में शस्त्र धार देती दुष्ट को दंड॥

मधु-केटभ संहार कर, करी धर्म की जीत।
मेरी भी बाधा हरो, हो जो कर्म पुनीत॥

॥ चौपाई ॥

नमस्कार चामुंडा माता, तीनों लोक में विख्याता।
हिमालय में पवित्र धाम है, महाशक्ति तुमको प्रणाम है॥

मार्कंडेय ऋषि ने ध्याया, कैसे प्रगट भेद बताया।
शुंभ-निशुंभ दो दैत्य बलशाली, तीनों लोक जो कर दिए खाली॥

वायु-अग्नि यां कुबेर संग, सूर्य-चंद्र वरुण हुए तंग।
अपमानित चरणों में आए, गिरिराज हिमालय को लाए॥

भद्र-रौद्र नित्य ध्याया, चेतन शक्ति करके बुलाया।
क्रोधित होकर काली आई, जिसने अपनी लीला दिखाई॥

चंड-मुंड और शुंभ पठाए, कामुक वैरी लड़ने आए।
पहले सुग्रीव दूत को मारा, भागा चंड भी मारा-मारा॥

अरबों सैनिक लेकर आया, द्रवुं लोक में क्रोध दिखाया।
जैसे ही दुष्ट ललकारा, हाहाकार मचा के मारा॥

सेना ने मचाई भगदड़, फाड़ा सिंह ने आया जो बाद।
हत्या करने चंड-मुंड आए, मदिरा पीकर के घुर्राए॥

चतुरंगी सेना संग लाए, ऊंचे-ऊंचे शिविर गिराए।
तुमने क्रोधित रूप निकाला, प्रकट डाल गले मुंड माला॥

चर्म की साड़ी चीते वाली, हड्डी ढांचा था बलशाली।
विकराल मुखी आंखें दिखलाई, जिसे देख सृष्टि घबराई॥

चंड-मुंड ने चक्र चलाया, ले तलवार हुंकार मचाया।
पापियों का कर दिया निस्तार, चंड-मुंड दोनों को मारा॥

हाथ में मस्तक ले मुस्काई, पापी सेना फिर घबराई।
सरस्वती मां तुम्हें पुकारा, पड़ा चामुंडा नाम तुम्हारा॥

चंड-मुंड की मृत्यु सुनकर, कालकेय मौर्य आए रण पर।
अरब खराब युद्ध के पाठ पर, झोंक दिए सब चामुंडा पर॥

उग्र चंडिका प्रकट आकर, गिद्धों की वाड़ी भरकर।
काली खटवांग घूंसे मारा, ब्रह्मांड ने फैकी जल धारा॥

माहेश्वरी ने त्रिशूल चलाया, मां वैष्णवी कंकड़ घुमाया।
कार्तिकेय की शक्ति आई, नृसिंह ने दैत्यों पर छाई॥

चुन-चुन सिंह सभी को खाया, हर दानव घायल घबराया।
रक्तबीज माया फैलाई, शक्ति उसने नई दिखाई॥

रक्त गिरा जब धरती ऊपर, नया दैत्य प्रकट था वही पर।
चामुंडा मां ने शूल घुमाया, मारा उसको लहू चूसाया॥

शुंभ-निशुंभ अब दोड़े आए, सत्तर सेना भरकर लाए।
वज्रपात संग शूल चलाया, सभी देवता कुछ घबराए॥

ललकारा फिर घूंसा मारा, ले त्रिशूल किया निस्तार।
शुंभ-निशुंभ धरती पर सोए, दैत्य सभी देखकर रोए॥

हे चामुंडा मां धन्य बचाया, अपना शुभ मंदिर बनवाया।
सभी देवता आकर मानते, हनुमत-भैरव चंवर डुलाते॥

आश्विन चैत नवरात्रि आओ, ध्वजा नारियल भेंट चढ़ाओ।
वन-द्रव नदी स्नान कराओ, चामुंडा मां तुमको पिओ॥

॥ दोहा ॥
शरणागत को शक्ति दो, हे जग की आधार।
'ॐ' ये नैया दोलती, कर दो भाव से पार॥

॥ इति चामुंडा देवी चालीसा समाप्त ॥

धार्मिक महत्व:

चामुंडा देवी चालीसा का पाठ करने से जीवन में कई लाभ प्राप्त होते हैं:

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि:

यह चालीसा देवी दुर्गा के एक स्वरूप की महिमा का वर्णन करती है, जिनकी पूजा हिमालय क्षेत्र, विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश में प्राचीन काल से होती आई है। मान्यता है कि इसका उल्लेख मार्कंडेय पुराण में चंडी पाठ के संदर्भ में किया गया है। देवी के चंड और मुंड नामक दैत्यों के विनाश की कहानी भारतीय पौराणिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण भाग है।

मुख्य संदेश:

उपसंहार:

चामुंडा देवी चालीसा एक आध्यात्मिक साधन है जो भक्ति, साहस और आत्मशांति को प्रोत्साहित करता है। इसे पढ़ने से मन और आत्मा में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसका गहरा अर्थ और संदेश इसे हर भक्त के लिए महत्वपूर्ण बनाते हैं।

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