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वैष्णो देवी चालीसा माँ वैष्णो देवी को समर्पित एक भक्ति स्तोत्र है। यह चालीसा माँ के दिव्य गुणों, उनकी कृपा और भक्तों पर उनके आशीर्वाद का वर्णन करती है। माँ वैष्णो देवी को तीन प्रमुख देवियों—माँ काली, माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती—का रूप माना जाता है।
माँ वैष्णो देवी का पवित्र धाम त्रिकूट पर्वत पर स्थित है, जहाँ माँ अपने दिव्य पिंडी रूप में निवास करती हैं। चालीसा का पाठ माँ की कृपा पाने, जीवन की बाधाओं को दूर करने और मानसिक शांति के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। विशेष रूप से नवरात्रि और अन्य शुभ अवसरों पर इसका पाठ भक्तों के लिए अत्यधिक फलदायक होता है।
चालीसा के बोल
॥ दोहा ॥
गरुड़ वाहिनी वैष्णवी, त्रिकूट पर्वत धाम।
काली, लक्ष्मी, सरस्वती, शक्ति तुम्हें प्रणाम॥
॥ चौपाई ॥
नमो: नमो: वैष्णो वरदानी।
कलि काल में शुभ कल्याणी॥
मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी।
पिंडी रूप में हो अवतारी॥
देवी देवता अंश दियो है।
रत्नाकर घर जन्म लियो है॥
करी तपस्या राम को पाऊँ।
त्रेता की शक्ति कहलाऊँ॥
कहा राम मणि पर्वत जाओ।
कलियुग की देवी कहलाओ॥
विष्णु रूप से कल्की बनकर।
लूंगा शक्ति रूप बदलकर॥
तब तक त्रिकूट घाटी जाओ।
गुफा अंधेरी जाकर पाओ॥
काली-लक्ष्मी-सरस्वती माँ।
करेंगी पोषण-पार्वती माँ॥
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे।
हनुमत भैरों प्रहरी प्यारे॥
रिद्धि, सिद्धि चंवर डुलावें।
कलियुग-वासी पूजत आवें॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल।
चरणामृत चरणों का निर्मल॥
दिया फलित वर माँ मुस्काई।
करन तपस्या पर्वत आई॥
कलि काल की भड़की ज्वाला।
इक दिन अपना रूप निकाला॥
कन्या बन नगरोटा आई।
योगी भैरों दिया दिखाई॥
रूप देख सुंदर ललचाया।
पीछे-पीछे भागा आया॥
कन्याओं के साथ मिली माँ।
कौल-कंदौली तभी चली माँ॥
देवा माई दर्शन दीना।
पवन रूप हो गई प्रवीणा॥
नवरात्रों में लीला रचाई।
भक्त श्रीधर के घर आई॥
योगिन को भंडारा दीना।
सबने रुचिकर भोजन कीना॥
मांस, मदिरा भैरों मांगी।
रूप पवन कर इच्छा त्यागी॥
बाण मारकर गंगा निकाली।
पर्वत भागी हो मतवाली॥
चरण रखे आ एक शिला जब।
चरण-पादुका नाम पड़ा तब॥
पीछे भैरों था बलकारी।
छोटी गुफा में जाय पधारी॥
नौ माह तक किया निवासा।
चली फोड़कर किया प्रकाशा॥
आद्या शक्ति-ब्रह्म कुमारी।
कहलाई माँ आद कुंवारी॥
गुफा द्वार पहुँची मुस्काई।
लांगुर वीर ने आज्ञा पाई॥
भागा-भागा भैरों आया।
रक्षा हित निज शस्त्र चलाया॥
पड़ा शीश जा पर्वत ऊपर।
किया क्षमा जा दिया उसे वर॥
अपने संग में पुजवाऊंगी।
भैरों घाटी बनवाऊंगी॥
पहले मेरा दर्शन होगा।
पीछे तेरा सुमरन होगा॥
बैठ गई माँ पिंडी होकर।
चरणों में बहता जल झर-झर॥
चौंसठ योगिनी-भैंरो बरवन।
सप्तऋषि आ करते सुमरन॥
घंटा ध्वनि पर्वत पर बाजे।
गुफा निराली सुंदर लागे॥
भक्त श्रीधर पूजन कीना।
भक्ति सेवा का वर लीना॥
सेवक ध्यानूं तुमको ध्याया।
ध्वजा व चोला आन चढ़ाया॥
सिंह सदा दर पहरा देता।
पंजा शेर का दुख हर लेता॥
जम्बू द्वीप महाराज मनाया।
सर सोने का छत्र चढ़ाया॥
हीरे की मूरत संग प्यारी।
जगे अखंड इक जोत तुम्हारी॥
आश्विन चैत्र नवराते आऊँ।
पिंडी रानी दर्शन पाऊँ॥
सेवक 'शर्मा' शरण तिहारी।
हरो वैष्णो विपत हमारी॥
॥ दोहा ॥
कलियुग में महिमा तेरी, है माँ अपरम्पार।
धर्म की हानि हो रही, प्रगट हो अवतार॥
धार्मिक महत्व:
वैष्णो देवी चालीसा माँ की कृपा पाने के लिए अत्यधिक प्रभावी है। इसका पाठ भक्तों को निम्नलिखित लाभ प्रदान करता है:
- मनोकामना पूर्ण करना: माँ वैष्णो देवी की कृपा से जीवन की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं।
- संकटों का निवारण: जीवन की बाधाओं को दूर कर सुख और समृद्धि लाती है।
- आध्यात्मिक शांति: यह चालीसा भक्तों को आत्मिक बल और मानसिक शांति प्रदान करती है।
पाठ विधि:
- तैयारी: सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- स्थान: माँ वैष्णो देवी की तस्वीर या मूर्ति के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएँ।
- अर्पण: माँ को पुष्प, नारियल, और फल चढ़ाएँ।
- पाठ: शांत मन से वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करें।
निष्कर्ष:
वैष्णो देवी चालीसा एक भक्तिमय साधन है, जो माँ के प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करता है। इसका नियमित पाठ माँ वैष्णो देवी की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। माँ के प्रति समर्पण और भक्ति से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति और सुख-शांति प्राप्त होती है