श्री भैरव चालीसा: भय के नाश और आत्मबल की वृद्धि का मार्ग

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श्री भैरव चालीसा भगवान भैरव को समर्पित एक अद्भुत भक्ति स्तोत्र है। भगवान भैरव को भगवान शिव का एक रौद्र रूप माना जाता है, जो धर्म के रक्षक और पापों के विनाशक हैं। उन्हें काशी के कोतवाल के रूप में भी जाना जाता है और वे अपने भक्तों की हर संकट से रक्षा करते हैं। यह चालीसा 40 चौपाइयों में भगवान भैरव की महिमा, उनके शक्तिशाली रूप और उनके अनुग्रह का वर्णन करती है।

भैरव चालीसा के पाठ से भय, संकट और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। यह चालीसा मानसिक शक्ति, आत्मविश्वास और भक्त के जीवन में सकारात्मकता लाने का अद्भुत माध्यम है। विशेष रूप से भैरव अष्टमी, सोमवार और शनिवार को इसका पाठ अत्यधिक फलदायी माना जाता है।

श्री भैरव चालीसा

दोहा

श्री भैरव सङ्कट हरन, मंगल करन कृपाल।
करहु दया जि दास पे, निशिदिन दीनदयाल॥

जय भैरव जय भूतपति, जय जय जय सुखकंद।
करहु कृपा नित दास पे, देहुं सदा आनंद॥

चौपाई

जय डमरूधर नयन विशाला।
श्याम वर्ण, वपु महा कराला॥

जय त्रिशूलधर जय डमरूधर।
काशी कोतवाल, संकटहर॥

जय गिरिजासुत परम कृपाला।
संकटहरण हरहु भ्रमजाला॥

जयति बटुक भैरव भयहारी।
जयति काल भैरव बलधारी॥

अष्टरूप तुम्हरे सब गायें।
सकल एक ते एक सिवायें॥

शिवस्वरूप शिव के अनुगामी।
गणाधीश तुम सबके स्वामी॥

जटाजूट पर मुकुट सुहावै।
भालचन्द्र अति शोभा पावै॥

कटि करधनी घुँघरू बाजै।
दर्शन करत सकल भय भाजै॥

कर त्रिशूल डमरू अति सुंदर।
मोरपंख को चंवर मनोहर॥

खप्पर खड्ग लिये बलवाना।
रूप चतुर्भुज नाथ बखाना॥

वाहन श्वान सदा सुखरासी।
तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी॥

जय जय जय भैरव भय भंजन।
जय कृपालु भक्तन मनरंजन॥

नयन विशाल लाल अति भारी।
रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी॥

बं बं बं बोलत दिनराती।
शिव कहँ भजहु असुर आराती॥

एकरूप तुम शम्भु कहाये।
दूजे भैरव रूप बनाये॥

सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी।
सब जग के तुम अन्तर्यामी॥

रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा।
श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा॥

श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी।
तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी॥

तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं।
सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं॥

व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी।
प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी॥

चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा।
निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा॥

क्रोधवत्स भूतेश कालधर।
चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर॥

अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे।
जयत सदा मेटत दुःख भारे॥

चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा।
क्रोधवान तुम अति रणरंगा॥

भूतनाथ तुम परम पुनीता।
तुम भविष्य तुम अहहू अतीता॥

वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा।
कालजयी तुम परम अनूपा॥

ऐलादी को संकट टार्यो।
साद भक्त को कारज सारयो॥

कालीपुत्र कहावहु नाथा।
तव चरणन नावहुं नित माथा॥

श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु।
दीन जानि मोहि पार उतारहु॥

भवसागर बूढत दिनराती।
होहु कृपालु दुष्ट आराती॥

सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै।
मोहिं भगति अपनी अब दीजै॥

करहुँ सदा भैरव की सेवा।
तुम समान दूजो को देवा॥

अश्वनाथ तुम परम मनोहर।
दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर॥

तम्हरो दास जहाँ जो होई।
ताकहँ संकट परै न कोई॥

हरहु नाथ तुम जन की पीरा।
तुम समान प्रभु को बलवीरा॥

सब अपराध क्षमा करि दीजै।
दीन जानि आपुन मोहिं कीजै॥

जो यह पाठ करे चालीसा।
तापै कृपा करहु जगदीशा॥

धार्मिक महत्व

भैरव चालीसा का पाठ भक्तों को कई आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्रदान करता है। इसके कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:

  1. भय से मुक्ति: भगवान भैरव सभी प्रकार के भय, शत्रुओं और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करते हैं।
  2. संकटों का नाश: यह चालीसा कठिन परिस्थितियों और जीवन की बाधाओं को दूर करती है।
  3. सुरक्षा और न्याय: भगवान भैरव धर्म के रक्षक हैं और अपने भक्तों को अन्याय से बचाते हैं।
  4. आध्यात्मिक उन्नति: इस चालीसा का पाठ करने से भक्ति और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  5. सुख-शांति: यह चालीसा मानसिक शांति और घर में समृद्धि लाती है।

भैरव अष्टमी, शनिवार, और सोमवार को इसका पाठ विशेष रूप से लाभकारी माना गया है।

मुख्य विषय और प्रतीकात्मकता

मुख्य विषय

  • निर्भयता: भगवान भैरव का आह्वान साहस और आत्मबल को प्रेरित करता है।
  • भक्ति और समर्पण: चालीसा में भगवान भैरव के प्रति अटूट विश्वास और समर्पण पर बल दिया गया है।
  • संरक्षण और न्याय: भगवान भैरव को न्याय के रक्षक और संकटमोचक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

प्रतीकात्मकता

  • श्वान (कुत्ता): भगवान भैरव का वाहन श्वान उनकी सतर्कता और वफादारी का प्रतीक है।
  • त्रिशूल और डमरू: त्रिशूल सृष्टि और विनाश का प्रतीक है, जबकि डमरू ब्रह्मांडीय लय का प्रतिनिधित्व करता है।
  • अष्ट रूप: भगवान भैरव के अष्ट रूप उनके विभिन्न गुणों और शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

पाठ के नियम

  1. तैयारी:
    • स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और पवित्र स्थान पर बैठें।
    • घी का दीपक जलाएं और फूल चढ़ाएं।
  2. आवृत्ति:
    • नियमित रूप से प्रतिदिन, भैरव अष्टमी, या शनिवार को पाठ करें।
    • विशेष अनुष्ठान में 108 बार चालीसा का पाठ करें।
  3. भावना:
    • शांत और समर्पित मन से पाठ करें। भक्ति और श्रद्धा का होना आवश्यक है।

समापन

श्री भैरव चालीसा भक्तों को भगवान भैरव की अनंत शक्ति और कृपा से जोड़ती है। इसका नियमित पाठ भय, संकट और नकारात्मकता को समाप्त करता है। यह चालीसा आत्मविश्वास, शांति और भक्ति के मार्ग पर प्रेरित करती है।

“जय भैरव, संकट हरन, कृपालु भगवान!”

By Ardhu

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